5- ईमान के स्तंभ
यह जान लेने के बाद कि इस्लाम के स्तंभ से मुराद उसके वह ज़ाहिरी प्रतीक हैं, जिन्हें एक मुसलमान धारण किए हुए रहता है और जिनका अदा करना एक व्यक्ति के मुसलमान होने का प्रमाण है, इस बात से भी अवगत हो जाना चाहिए कि कुछ स्तंभों का संबंध इन्सान के हृदय से भी होता है और एक व्यक्ति के मुसलमान होने के लिए उनपर विश्वास रखना ज़रूरी है। इस तरह के स्तंभों को ईमान के स्तंभ कहा जाता है। ये स्तंभ दिल के अंदर जितने मज़बूत होंगे, इन्सान का ईमान उतना ही मज़बूत होगा, और एक इन्सान अल्लाह के मोमिन बंदों के समूह में प्रवेश करने का हक़दार बन जाएगा। मोमिन का दर्जा मुसलमान के दर्जे से ऊँचा है। अतः हर मोमिन मुसलमान है, लेकिन हर मुसलमान मोमिन भी हो, यह ज़रूरी नहीं है।
इतना तो तय है कि ऐसा हो सकता है कि किसी के अंदर ईमान का मूल रूप हो, लेकिन कभी-कभी उसके अंदर संपूर्ण ईमान नहीं होता है।
ईमान के छह स्तंभ हैं
और वह हैं; अल्लाह, उसके फरिश्तों, उसकी किताबों, उसके रसूलों, अंतिम दिन तथा भाग्य के अच्छा एवं बुरा होने पर विश्वास रखना
पहला स्तंभ: अल्लाह पर ईमान रखना, अल्लाह पर ईमान का अर्थ इन्सान का दिल अल्लाह के प्रेम, उसके सम्मान और उसके आगे मिनम्रता और उसके आदेशों के पालन की भावना से भरा हो। इसी तरह उसका दिल अल्लाह के भय और उसके पास जो कुछ है उसकी आशा से भी आबाद हो। इस तरह वह अल्लाह के तक़वा वाले बंदों और उसके सीधे मार्ग पर चलने वाले बंदों में शामिल हो जाता है।
दूसरा स्तंभ: फ़रिश्तों पर ईमान, अर्थात इस बात का विश्वास कि वे अल्लाह के बंदे हैं, उन्हें नूर से पैदा किया गया है, आकाशों एवं धरती में फैले हुए फ़रिश्ते इतनी बड़ी संख्या में हैं कि उनकी तादाद अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता, इबादत, ज़िक्र एवं तसबीह उनकी प्रवृत्ति है। वे रात दिन तसबीह में लगे रहते हैं और थकते नहीं हैं।
“वे अवज्ञा नहीं करते अल्लाह के आदेश की, तथा वही करते हैं जिसका आदेश उन्हें दिया जाए।”
[सूरह अत-तहरीम: 6]
अल्लाह ने उनमें से हर किसी को कोई न कोई ज़िम्मेदारी सौंप रखी है। कुछ लोग अल्लाह का अर्श उठाए हुए हैं, कोई प्राण निकालने का काम कर रहा है, कोई आकाश से वह्यी लेकर नबियों के पास आता है जैसा कि जिबरील अलैहिस्सलाम, और वह उनमें सबसे श्रेष्ठ हैं। और उन में से कुछ जन्नत एवं जहन्नुम का दरोगा हैं। इनके अलावा बहुत सारे फ़रिश्ते हैं, सब के सब फ़रिश्ते नेक हैं मोमिनों से प्रेम करते हैं, उनके लिए बहुत ज़्यादा दु आ एवं क्षमायाचना करते हैं।
तीसरा स्तंभ: अल्लाह की उतारी हुई किताबों पर ईमान
एक मुसलमान का विश्वास है कि अल्लाह अपने जिन रसूलों पर चाहता है, किताबें उतारता है, जिनमें सच्ची सूचनाएँ तथा न्यायसंगत आदेश होते हैं। उसका विश्वास है कि अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम पर तौरात, ईसा अलैहिस्सलाम पर इंजील, दाऊद अलैहिस्सलाम पर ज़बूर एवं इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर कई ग्रंथ उतारे थे, और ये सारी किताबें आज उस रूप में मौजूद नहीं हैं जिस रूप में अल्लाह ने उन्हें उतारा था। साथ ही उसका विश्वास है कि अल्लाह ने अपने अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर क़ुरआन उतारा है, जिसे 23 वर्षों की अवधि में थोड़ा-थोड़ा करके उतारा गया है और अल्लाह ने उसे किसी भी परिवर्तन एवं छेड़छाड़ से सुरक्षित रखा है।
“वास्तव में, हमने ही इस ज़िक्र (क़ुरआन) को उतारा है और हम ही इसके रक्षक हैं।”
[सूरह अल-हिज्र: 9]
चौथा स्तंभ: रसूलों पर ईमान
(रसूलों के बारे में पीछे विस्तारपूर्वक बात हो चुकी है)। मानव इतिहास में जितने भी समुदाय प्रकट हुए हैं, अल्लाह ने उन सब की ओर कोई न कोई नबी भेजा है। सब नबियों का धर्म एक तथा रब एक है। सब ने मानव समाज को अल्लाह को एक मानने और केवल उसी की उपासना करने की ओर बुलाया है तथा अविश्वास, बहुदेववाद एवं अवज्ञा से चेताया है।
“तथा कोई समुदाय ऐसा नहीं हुआ जिसमें कोई डराने वाला न आया हो |”
[सूरह फ़ातिर: 24]
सारे नबी दूसरे इन्सानों की तरह ही इन्सान थे, बस अंतर इतना था कि उन्हें अल्लाह ने अपना संदेश पहुँचाने के लिए चुन लिया था।
“निःसन्देह हमने आपकी ओर उसी प्रकार वह्यी (प्रकाशना) की है जैसा कि नूह और उनके बाद के नबियों की ओर वह्यी की और इब्राहीम , इस्माइल , इस्हाक़, याक़ूब, अस्बात, ईसा, अय्यूब, यूनुस, हारून और सुलैमान पर भी वह्यी उतारी और दाऊद को ज़बूर दिया।
हम ने आप से इस से पूर्व कुछ रसूलों की चर्चा की है और कुछ रसूलों के बारे आपको नहीं बताया है, और अल्लाह ने मूसा से बात की है।
यह सभी रसूल शुभ सूचना सुनाने वाले और डराने वाले थे, ताकि इन रसूलों के (आगमन के) पश्चात् लोगों के लिए अल्लाह पर कोई तर्क न रह जाए और अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।”
[सूरह अन-निसा: 163-165]
मुसलामन सारे नबियों पर ईमान रखते हैं, उनसे प्रेम करते हैं, उन से सहयोग करते हैं और उनके बीच भेदभाव नहीं करते। जिसने उनमें से किसी एक को झुठलाया, उसे बुरा भला कहा, गाली दी या कष्ट दिया, उसने सारे नबियों का इनकार किया।
उनमें सबसे उत्तम, उत्कृष्ट एवं अल्लाह के निकट सबसे अधिक सम्मान वाले नबी अंतिम नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं।
पाँचवाँ स्तंभ: आख़िरत के दिन पर ईमान
आख़िरत के दिन पर ईमान का अर्थ यह है कि अल्लाह क़ब्रों से सारे बंदों को उठाएगा और क़यामत के दिन सब को एकत्र करेगा, ताकि दुनिया में किए हुए उनके कर्मों का हिसाब ले।
“उस दिन यह धरती दूसरी धरती से तथा आकाश बदल दिए जाएँगे और सब अल्लाह के समक्ष उपस्थित होंगे, जो अकेला प्रभुत्वशाली है।”
[सूरह इब्राहीम: 48]
“जब आकाश फट जाएगा।
तथा जब सितारे (टूट कर) बिखर जाएँगे।
और जब सागर पूरे ज़ोर से बह पड़ेंगे।
और जब क़बरें खोल दी जाएँगी।
तब प्रत्येक प्राणी को ज्ञान हो जाएगा, जो उसने पहले भेजा और जो पीछे छोड़ दिया है।
[सूरह अल-इनफ़ितार: 1-5]
“और क्या मनुष्य सोचता नहीं करता है कि हमने उसे वीर्य से पैदा किया? फिर वह खुला झगड़ालू बन गया है।
और हमारे लिए उदाहरण बयान करता है, और अपनी उत्पत्ति की सत्यता को भूल जाता है। और कहता है इन हड्डियों को सड़ गल जाने के बाद कौन ज़िन्दा करेगा?
आप कह दें: वही, जिसने उसे प्रथम बार पैदा किया था और वह प्रत्येक उत्पत्ति के बारे में भली-भाँति ज्ञान रखता है।
वह अल्लाह जिसने तुम्हारे लिए हरे वृक्ष से आग पैदा किया है जिससे तुम लोग चूल्हा जलाते हो।
तथा क्या जिसने आकाशों तथा धरती को पैदा किया है वह इस बात का सामर्थ्य नहीं रखता है कि वह उस जैसा आदमी दोबारा पैदा करे? क्यों नहीं, जबकि वह बड़ा पैदा करने वाला अति ज्ञानी है?
उसकी शान तो यह है कि जब वह किसी चीज़ को अस्तित्व प्रदान करना चाहे तो कहता है हो जा तो वह हो जाती है।
तो वह हर ऐब से पवित्र है, उसी के हाथ में प्रत्येक वस्तु का राज्य है और तुम सब उसी की ओर लौटाए जाओगे।”
[सूरह यासीन: 77-83]
“और हम क़यामत के दिन न्याय का तराज़ू स्थापित करेंगे, फिर किसी पर कोई अत्याचार नहीं होगा तथा यदि राई के दाना के बराबर (भी किसी का कर्म) होगा तो हम उसे सामने ले आएँगे और हिसाब लेने वाले के तौर पर हम काफी हैं।”
[सूरह अल-अंबिया: 47]
“जो कण के बराबर भी भला करेगा वह उसे देख लेगा और जो कण के बराबर भी बुराई करेगा वह उसे देख लेगा।”
[सूरह अज़-ज़लज़ला: 7-8]
उस दिन जहन्नुम के द्वार उन लोगों के लिए खोले जाएँगे जो अल्लाह के क्रोध, नाराज़गी और उसकी पीड़ादायक यातना के हक़दार बन चुके होंगे और जन्नत के द्वार मोमिन के लिए खोले जाएँगे जो दुनिया से सत्कर्म करके आए होंगे।
“तथा फ़रिश्ते उन्हें हाथों-हाथ लेंगे (तथा कहेंगे) यही तुम्हारा वह दिन है, जिसका तुम से वादा किया जा रहा था।”
[सूरह अल-अंबिया: 103]
“तथा काफ़िरों को झुंड के साथ नरक की ओर हाँका जाएँगा , यहाँ तक कि जब वे उसके पास आएँगे तो उसके द्वार खोल दिए जाएँगे तथा उसके दारोगा उनसे कहेंगे: क्या तुम्हारे पास तुम में से ही रसूल नहीं आए, जो तुम्हें तुम्हारे पालनहार की आयतें सुनाते तथा तुम्हें इस दिन का सामना करने से सचेत करते? वे कहेंगे: क्यों नहीं? परन्तु, काफ़िरों पर यातना का शब्द सिद्ध हो गया। कहा जाएगा कि प्रवेश कर जाओ नरक के द्वारों से, सदावासी होकर उसमें। अतः बुरा है घमंडियों का ठिकाना।
तथा जो लोग अपने पालनहार से डरते रहे, वे भेज दिए जाएँगे स्वर्ग की ओर झुंड के साथ। यहाँ तक कि जब वे उसके पास आ जाएँगे तथा उसके द्वार खोल दिए जाएँगे और उनसे उसके रक्षक कहेंगे: शांति हो तुम पर, तुम प्रसन्न रहो, और तुम प्रवेश कर जाओ उसमें, सदावासी होकर।
तथा वे कहेंगे: सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने हमसे अपना वचन सच कर दिखाया तथा हमें इस धरती का उत्तराधिकारी बना दिया, हम स्वर्ग में जहाँ चाहें, रहें। क्या ही अच्छा प्रतिफल है नेक कर्म करने वालों का।”
[सूरह अज़-ज़ुमर: 71-75]
इस जन्नत में ऐसी-ऐसी नेमतें होंगी, जिन्हें न किसी आँख ने देखा है, न किसी कान ने सुना है और न जिनकी कल्पना किसी दिल ने की है।
“तो कोई प्राणी नहीं जानता है कि हमने उनके लिए क्या कुछ आँखों की ठंडक छुपा रखी है, उन कर्मों के बदले में जो वे कर रहे थे।
क्या ईमान वाला व्यक्ति और जो ईमान नहीं रखते, वे समान हो सकते हैं? कभी समान नहीं हो सकते।
जो लोग ईमान लायेंगे तथा सदाचार करेंगे, उन्हीं के लिए स्थायी स्वर्ग हैं, अतिथि सत्कार के तौर पर, उसके बदले जो वे करते रहे हैं।
और जो अवज्ञा करेंगे उनका ठिकाना नरक है। जब-जब वे उसमें से निकलना चाहेंगे तो उसमें वापस कर दिए जाएँगे और उनसे कहा जाएगा कि उस अग्नि की यातना चखो जिसे तुम झुठला रहे थे।”
[सूरह अस-सजदा: 17-20]
उस स्वर्ग की विशेषता, जिसका वादा आज्ञाकारियों से किया गया है, उसमें निर्मल जल की नहरें हैं तथा दूध की नहरें हैं, जिसका स्वाद नहीं बदलेगा तथा मदिरा की नहरें हैं, पीने वालों के स्वाद के लिए, तथा शुद्ध मधू की नहरें हैं तथा उन्हीं के लिए उनमें प्रत्येक प्रकार के फल हैं, तथा उनके पालनहार की ओर से क्षमा भी। (क्या यह लोग) उसके समान होंगे जो नरक में सदा के लिए जलेंगे, तथा खौलता हुआ जल पिलाए जाएँगे, जो उनकी आँतों को खंड-खंड कर देगा?”
[सूरह मुहम्मद: 15]
निश्चय ही आज्ञाकारी बाग़ों तथा सुख में होंगे।
प्रसन्न होकर उससे जो उनके रब ने उन्हें प्रदान किया है, तथा उन्हें उनका पालनहार नरक की यातना से बचा लेगा।
(उनसे कहा जायेगा:) जी भरकर खाओ और पियो, उसके बदले जो तुम कर रहे थे।
तकिये लगाए हुए होंगे बराबर बिछे हुए तख़्तों पर तथा हम उनका विवाह करेंगे बड़ी आँखों वाली स्त्रियों से।”
[सूरह अत-तूर: 17-20]
दुआ है कि अल्लाह हम सब को जन्नत में प्रवेश का सौभाग्य प्रदान करे।
छठा स्तंभ: भले -बुरे भाग्य पर ईमान
इसका अर्थ यह है कि इस ब्रह्मांड में होने वाली हर गतिविधि को अल्लाह ने लिख रखा है एवं वह उसी के अनुसार अंजाम पाती है।
“धरती में एवं तुम्हारे प्राणों में जो भी आपदा पहुँचती है, वह एक पुस्तक में लिखी है, इससे पूर्व कि हम उसे उत्पन्न करें, बेशक यह अल्लाह के लिए अति सरल है।”
[सूरह अल-हदीद: 22]
“निश्चय ही हमने प्रत्येक वस्तु को एक अनुमान से पैदा किया है।”
[सूरह अल-क़मर: 49]
“(हे नबी!) क्या आप नहीं जानते कि अल्लाह जानता है, जो आकाश तथा धरती में है। यह सब एक किताब में (अंकित) है। वास्तव में, यह अल्लाह के लिए अति सरल है।”
[सूरह अल-हज्ज: 70]
यह छह स्तंभ हैं, जो इन को पूरा करेगा एवं इनपर पूर्ण रूप से ईमान लाएगा, वह अल्लाह के मोमिन बंदों में शामिल हो जाएगा। आम श्रृष्टि के ईमान की श्रेणियाँ अलग-अलग होती हैं। किसी का ज़्यादा और किसी का कम। ईमान की उच्चतम श्रेणी एहसान की श्रेणी है। यानी यह स्थान प्राप्त कर लेना कि इन्सान अल्लाह की इबादत इस तरह करे, जैसे वह अल्लाह को देख रहा है या कम से कम दिल में यह भावना रखे कि अल्लाह उसे देख रहा है।
इस श्रेणी को प्राप्त करने वाले लोग सृष्टि के चयनित लोग होते हैं, जिन्हें जन्नत अल-फ़िरदौस की उच्च श्रेणियाँ प्राप्त होंगी।
[5] सहीह बुख़ारी, हदीस संख्या: 4777
6- इस्लामी शिक्षाएँ तथा इस्लामी आचरण