इस्लाम धर्म

क़ुरआन एवं हदीस के आलोक में

3- अंतिम नबी एवं रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम

ईसा अलैहिस्सलाम के उठाए जाने के बाद लगभग छह सदियों का एक लंबा समय गुज़र गया और लोग सत्य के मार्ग से काफ़ी दूर हो गए तथा उनके यहाँ अवमानना, गुमराही और ग़ैरुल्लाह की उपासना जैसी चीज़ें फैल गईं।

ऐसे में अल्लाह ने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को हिजाज़ की भूमि के मक्का शहर में हिदायत एवं सत्य धर्म के साथ भेजा, ताकि लोग केवल एक अल्लाह की इबादत करें, जिसका कोई साझी नहीं है। अल्लाह ने आपको कई निशानियाँ एवं चमत्कार भी दिए, जो आपके नबी होने के दावे को सिद्ध करते थे। और अल्लाह ने आपके द्वारा नबियों के सिलसिलेे का अंत कर दिया, आपके धर्म को अंतिम धर्म घोषित कर दिया और उसे क़यामत के दिन तक के लिए किसी प्रकार के परिवर्तन और छेड़छाड़ से सुरक्षित कर दिया। अब प्रश्न यह उठता है कि मुहम्मद कौन हैं?

उनकी जाति कौन-सी जाति है?

अल्लाह ने उनको कैसे रसूल बनाया था?

उनकी नब़वत के क्या-क्या प्रमाण हैं?

तथा आपके जीवन का विवरण क्या है?

हम इन्हीं प्रश्नों का उत्तर आने वाले पृष्ठों में संक्षिप्त रूप से देने का प्रयास करेंगे।

क- आपका वंश एवं पारिवारिक सम्मान

आपका नाम मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब बिन हाशिम बिन अब्द-ए-मनाफ़ बिन कुसै बिन किलाब है। आपका नसब इस्माईल बिन इबराहीम अलैहिमस्सलाम से जा मिलता है। आपका संबंध क़ुरैश क़बीले से था। क़ुरैश एक अरब क़बीला था। आपका जन्म 571 ईस्वी को हुआ।

आप माँ के पेट ही में थे कि पिता का देहांत हो गया। अतः अनाथ अवस्था में अपने दादा अब्दुल मुत्तलिब की देखरेख में बड़े हुए। फिर जब दादा की मृत्यु हो गई, तो चचा अबू तालिब ने परवरिश की।

ख- आपके गुण

हम पीछे कह आए हैं कि अल्लाह की ओर से चयनित रसूल को आवश्यक रूप से आत्म उत्कृष्टता, सत्यता एवं अच्छे आचरण के शिखर पर विराजमान होना चाहिए। मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम भी ऐसे ही थे। बचपन ही से आप एक सच्चे, अमानतदार, चरित्रवान, मधुरभाषी, स्पष्ट बात करने वाले, निकट एवं दूर सबके प्रिय, पूरी जाति की नज़र में सम्मानित व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे। लोग आपको अल-अमीन यानी अमानतदार की उपाधि से पुकारा करते और यात्रा में निकलते समय आपके पास अपनी अमानतें रखकर जाते थे।

अच्छे आचरण के साथ-साथ आप सुंदर भी थे। आपके दीदार से आँख थकती नहीं थीं। गोरा चेहरा, बड़ी-गहरी आँखें, लंबी-लंबी पलकें, काले-काले बाल, चौड़े कंधे, न अधिक लंबे और न नाटे। क़द दरमियाना था। एक हद तक लंबे ही दिखते थे। आपके एक साथी ने आपकी विशेषता बयान करते हुए कहा है:

“मैंने अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को एक यमनी जोड़े में देखा, तो महसूस किया कि मैंने आप से सुंदर व्यक्ति कभी नहीं देखा है।”

आप अनपढ़ थे, न पढ़ सकते थे और न लिख सकते थे। आप पैदा भी हुए थे एक अनपढ़ जाति में, जिसमें पढ़ने-लिखने वालों की संख्या बहुत कम थी। लेकिन थे वे चतुर, मज़बूत याददाश्त के मालिक और तेज़ दिमाग़।

ग- क़ुरैश तथा अरब

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जाति तथा आपके परिवार के लोग मक्का में अल्लाह के पवित्र घर काबा के निकट रहते थे, जिसे बनाने का आदेश अल्लाह ने इबराहीम अलैहिस्सलाम और उनके पुत्र इसमाईल अलैहिस्सलाम को दिया था।

लेकिन ज़माना के गुजरने के साथ साथ वे इब्राहीम अलैहिस्सलाम के धर्म (केवल एक अल्लाह की उपासना) से हट गए थे, और उन्होंने तथा उनके आस-पास के क़बीलों ने पत्थर, लकड़ी और सोने के बुत बनाकर काबा के चारों ओर रख लिए थे। वे उन बुतों को पवित्र जानते और उन्हें लाभ एवं हानि का मालिक मानते थे। उन्होंने उनकी पूजा के कई रस्म भी बना लिए थे। उनका एक मशहूर बुत हुबल था, जो उनका सबसे बड़ा और सम्मानित बुत था।

मक्का के बाहर भी उनके कई अन्य बुत एवं पेड़ थे, जिनकी पूजा की जाती थी और जिनको श्रद्धा का पात्र समझा जाता था। जैसे लात, उज़्ज़ा एवं मनात आदि। उनका जीवन अभिमान, घमंड, दूसरों पर अत्याचार और रक्तरंजित युद्धों से भरा हुआ था। हालाँकि उनके अंदर बहादुरी, अतिथि सत्कार और सत्यता जैसी कुछ अच्छाई भी थीं।

घ- मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को नबी बनाया जाना

जब अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आयु चालीस साल की हुई, और आप मक्का के बाहर हिरा नामी एक गुफ़ा में थे कि आपके पास आकाश की ओर से अल्लाह की पहली वह्य आई। हुआ यूँ कि जिबरील अलैहिस्सलाम आपके पास आए, आपको अपने सीने से लगाकर इस तरह दबाया कि आपकी सहन शक्ति जवाब देने लगी और और उसके बाद कहा कि पढ़िए। जब आपने कहा कि मैं पढ़ना नहीं जानता, तो दोबारा सीने से लगाकर इस तरह दबाया कि आपकी सहन शक्ति फिर से जवाब देने लगी और उसके बाद आपसे कहा कि पढ़िए। जब आपने दोबारा उत्तर दिया कि मैं पढ़ना नहीं जानता, तो तीसरी बार आपको सीने से लगाकर इस तरह दबाया कि आपकी सहन शक्ति जवाब देने लगी और उसके बाद जब कहा कि पढ़िए, तो आपने पूछा कि मैं क्या पढ़ूँ? उन्होंने कहा:

“अपने पालनहार के नाम से पढ़, जिसने पैदा किया।

जिसने मनुष्य को रक्त के लोथड़े से पैदा किया।

पढ़, और तेरा पालनहार बड़ा उदार है।

जिसने क़लम के द्वारा ज्ञान सिखाया।

इन्सान को उसका ज्ञान दिया जिसको वह नहीं जानता था।”

[सूरह अल-अलक़: 1-5]

जब फ़रिश्ता आपको छोड़कर चला गया तो आप भयभीत होकर एवं घबराए हुए घर वापस आए और अपनी पत्नी खदीजा से कहा कि मुझे चादर ओढ़ा दो, क्योंकि मुझे अपनी जान का भय लग रहा है। यह सुन आपकी पत्नी ने कहा: ऐसा नहीं हो सकता, अल्लाह की क़सम वह आपको कभी दुखी नहीं होने देगा। आप रिश्तेदारों से रिश्तेदारी निभाते हैं, असहाय लोगों का बोझ उठाते हैं और सत्य के मार्ग में आने वाली आपदाओं पर मदद करते हैं।

फिर आपके पास जिबरील अलैहिस्सलाम दोबारा अपने असली रूप में आए। वह पूरे क्षितिज को घेरे हुए थे। उन्होंने कहा कि ऐ मुहम्मद! मैं जिबरील हूँ और आप अल्लाह के रसूल हैं।

फिर आकाश की ओर से निरंतर वह्यी का सिलसिला जारी रहा, जिसके माध्यम से अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को आदेश दिया गया कि अपनी जाति को केवल एक अल्लाह की उपासना का आदेश दें और उन्हें बहुदेववाद और अविश्वासवाद से सावधान करें। तो आप एक एक करके अपने निकटवर्तियों से इस्लाम ग्रहण करने का आह्वान करने लगे। आपके आह्वान को सबसे पहले आपकी पत्नी खदीजा बिंत खुवैलिद, मित्र अबू बक्र सिद्दीक़ और चचेरे भाई अली बिन अबू तालिब ने स्वीकार किया।

जब लोगों को आपके आह्वान की जानकारी हुई तो वह आपको इस कार्य से रोकने लगे, आपके विरुद्ध चालें चलने लगे एवं आपके शत्रु बन गए। एक दिन सुबह के समय आप लोगों को ऊँची आवाज़ में पुकार कर कहा: “वा सबाहाह” अरब के लोग इस शब्द का प्रयोग लोगों को जमा करने के लिए करते थे। इसे सुनकर लोग यह जानने के लिए आने लगे कि आप क्या कहते हैं। जब सब लोग जमा हो गए तो पूछा: “यदि मैं बताऊँ कि शत्रु तुमपर सुबह या शाम के समय हमला करने वाला है, तो क्या तुम लोग मेरी बात को सच मानेंगे?” लोगों ने उत्तर दिया: हमने कभी आपको झूठ बोलते हुए नहीं देखा है। आपने कहा: “तब सुनो, मैं तुम्हें कठिन यातना से डराने वाला बनकर आया हूँ।” यह सुनकर आपके चचा अबू लहब ने कहा,: तेरा नाश हो, क्या यही कहने के लिए तू ने हमें जमा किया था? याद रहे अबू लहब और उसकी पत्नी अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सबसे अधिक दुश्मनी रखने वाले लोगों में से थे, इसी अवसर पर अल्लाह ने अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर या सूरह उतारी:

“अबू लहब बर्बाद हो गया और वह कभी कामयाब न हुआ।

उसका धन तथा जो उसने कमाया उसके काम नहीं आया।

वह शीघ्र ही भड़कती हुई आग में प्रवेश करेगा।

तथा उसकी पत्नी भी, जो लकडियाँ लिए फिरती है।

उसकी गर्दन में मूँज की एक रस्सी होगी।

[सूरह अल-मसद: 1-5]

इसके बाद भी अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन्हें इस्लाम की ओर बुलाते रहे और उनसे कहते रहे कि ‘ला इलाहा इल्लल्लाहु’ कह दो, सफल हो जाओगे। यह सुनकर लोगों ने कहा कि इसने तो बहुत-से पूज्यों की जगह एक ही पूज्य बना डाला? यह तो बडी आश्चर्यजनक बात है।

इधर अल्लाह की ओर से ऐसी आयतें उतरती रहीं जो लोगों को सही मार्ग की ओर बुलाती और जिस गुमराही में वे पड़े हुए थे, उस से सावधान करती थीं। उन में से एक अल्लाह का यह कथन है:

“हे मेरे नबी! आप कह दें कि क्या तुम उस अल्लाह का इनकार करते हो जिसने धरती को दो दिन में पैदा किया, और उसका साझी बनाते हो? वही है सर्वलोक का पालनहार।

उसी ने धरती में उसके ऊपर पर्वत बनाए तथा उसमें बरकत रख दी, और चार दिनों में उसमें रहने वाले वासियों के आहारों का समान रूप से आकलन किया, और यह प्रश्न करने वालों के लिए है।

फिर आकाश की ओर ध्यान केंद्रित किया जब वह धुआँ था, तो उसे तथा धरती को आदेश दिया कि तुम दोनों आ जाओ खुशी से अथवा मजबूरी से। तो दोनों ने कहा: हम खुशी से आ गए।

फिर उसने आकाश को दो दिनों में सात आकाश बना दिया, तथा प्रत्येक आकाश में उस से संबंधित आदेश जारी कर दिया, तथा हमने समीप के (पहले) आकाश को दीपों (तारों) से सुसज्जित तथा उनके द्वारा उनको सुरक्षित कर दिया। यह अति प्रभाव्शाली सर्वज्ञ की योजना है।

फिर भी यदि वह विमुख हों, तो आप कह दें कि मैंने तुम्हें आद तथा समूद की कड़ी यातना जैसी कड़ी यातना से सावधान कर दिया।

[सूरह फ़ुस्सिलत: 9-13]

लेकिन इन आयतों और आह्वान का कोई फ़ायदा नहीं हुआ। उनकी सरकशी और सत्य से दूरी बढ़ती ही गई। इतना ही नहीं बल्कि वे हर उस व्यक्ति को कठिन यातना देने लगे जो इस्लाम ग्रहण कर लेता। उन कमज़ोर लोगों को तो कुछ अधिक ही यातनाएँ सहनी पड़ीं जिनका कोई मददगार न था। ऐसा भी हुआ कि किसी के सीने पर एक बड़ा सा चट्टान रख दिया जाता और उसे सख़्त धूप के समय बाज़ारों में खींचते और कहते कि मुहम्मद के धर्म से अलग हो जाओ या फिर यह यातना सहते रहो। इस तरह की यातना सहन न कर पाने की वजह से उन में से कई लोगों की मृत्यु हो गई।

जहाँ तक अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बात है, तो आपको अपने चचा अबू तालिब की सुरक्षा प्राप्त थी, जो आपसे प्यार करते और आपका ख़याल रखते थे। उनकी गिनती क़ुरैश क़बीला के बड़े लोगों में होती थी। लेकिन इन सबके बावजूद वह मुसलमान नहीं हुए।

क़ुरैश ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ मोल भाव करने की भी कोशिश की। उन्होंने धन, राज्य एवं ऐश व आराम की चीज़ों की पेशकश की और इस नए धर्म से किनारा कर लेने को कहा जो उनके पवित्र पूज्यों को त्यागने का आह्वान करता था, जबकि वह उनको पवित्र मानते थे और उनकी इबादत करते थे, लेकिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम टस से मस नहीं हुए, क्योंकि आप जो कुछ कर रहे थेे, वह अल्लाह का आदेश था, यदि वह उससे किनारा कर लेते तो अल्लाह की यातना के हक़दार ठहरते।

आपने उनसे कहा कि मैं तुम्हारा भला चाहता हूँ और तुम मेरी जाति और मेरे खानदान के लोग हो।

“अल्लाह की कसम! मैं सारे लोगों से झूठ बोल सकता हूँ पर तुमसे नहीं और सारे लोगों को धोखा दे सकता हूँ पर तुम को नहीं दे सकता।”

जब क़ुरैश का यह भाव ताव का प्रयास भी विफल हो गया तो उन्होंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके अनुसरणकारियों के साथ शत्रुता की धार को और तेज़ कर दिया। उन्होंने अबू तालिब से अनुरोध किया कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उनके हवाले कर दें, ताकि आपका वध कर दें, और इसके बदले वह जो चाहें देंगे, या वह उनके बीच अपने धर्म का प्रचार रोक दें। अबू तालिब ने जब आपसे इस्लाम का प्रचार बंद करने को कहा,

तो आपकी आँखें डबडबा गईं और फ़रमाया:

“चचा जान! अगर वे मेरे दाएँ हाथ में सूरज और बाएँ हाथ में चाँद रख दें और उसके बदले में मुझे इस धर्म का परित्याग करने को कहें, तब भी मैं उसे उस समय तक छोड़ नहीं सकता, जब तक अल्लाह उसे स्थापित न कर दे, या मैं उसका प्रचार करते हुए मर न जाऊँ।”

यह सुनकर आपके चचा ने कहा: तुम अपना काम जारी रखो। अल्लाह की क़सम! जब तक मैं ज़िंदा हूँ तुम पर कोई आँच नहीं आने दूँगा। फिर जब अबू तालिब की मृत्यु का समय आया तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उनके पास पहुँचे। उस समय उनके पास क़ुरैश के कई सरदार मौजूद थे। आपने अपने चचा से इस्लाम ग्रहण करने का आग्रह किया और कहा कि चचा जान! बस आप एक बार ला इलाहा इल्लल्लाहु कह दें, मैं उसको आधार बनाकर अल्लाह से आपके लिए बात करूँगा। यह सुन क़ुरैश के मणमान्य लोगों ने अबू तालिब से कहा कि क्या आप अब्दुल मुत्तलिब का धर्म छोड़ देंगे? क्या आप अपने पूर्वजों के धर्म का परित्याग कर देंगे? यह सुन अबू तालिब अपने पूर्वजों का धर्म छोड़कर इस्लाम ग्रहण करने पर राज़ी न हुए और शिर्क की अवस्था ही में दुनिया से चले गए।

अपने प्यारे चचा के शिर्क की अवस्था में मृत्यु का अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को बड़ा दुख हुआ। ऐसे में अल्लाह ने आपसे कहा:

“(हे नबी!) आप जिसे चाहें सुपथ नहीं दिखा सकते, परन्तु अल्लाह जिसे चाहे सुपथ दिखाता है, और वह सुपथ प्राप्त करने वालों को भली-भाँति जानता है।”

[सूरह अल-क़सस: 56]

चचा अबू तालिब की मृत्यु के पश्चात अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। आप जब काबा के निकट नमाज़ पढ़ रहे होते तो लोग जानवरों के मल लाकर आपकी पीठ पर डाल जाते।

इन हालात में अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ताइफ़ गए, ताकि ताइफ़ वालों को इस्लाम की ओर बुलाया जा सके। (ताइफ़ मक्का से 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक शहर है।) लेकिन ताइफ़ वालों ने आपके आह्वान को मक्का वालों से भी कठोर तरीक़े से ठुकरा दिया। उन्होंने आपको ताइफ़ से निकाल दिया और अपने कुछ मूर्ख लोगों को वरगलाया, जो आपके पीछे-पीछे चल रहे थे और आपको पत्थर मारते जा रहे थे। इससे आपकी दोनों एड़ियाँ खून से लत-पत हो गईं।

ऐसे में आपने अपने रब से दुआ की और मदद माँगी, तो अल्लाह ने आपके पास एक फ़रिश्ते को भेजा जिसने आपसे कहा कि आपके पालनहार ने आपके साथ जो व्यवहार हुआ है उसे देखा है। अतः यदि आप चाहें तो वह मक्का के दोनों जानिब स्थित दोनों बड़े-बड़े पहाड़ों को आपस में मिले दे और इन लोगों को पीसकर रख दे। लेकिन आपने उत्तर दिया कि नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूँगा। मुझे उम्मीद है कि इन लोगों के बाद इनकी नस्ल से ऐसे लोग पैदा होंगे, जो केवल एक अल्लाह की उपासना करेंगे और किसी को उसका साझी नहीं ठहराएँगे।

इसके बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मक्का आ गए। इस्लाम ग्रहण करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के साथ दुश्मनी एवं उत्पीड़न का सिलसिला निरंतर जारी रहा। कुछ दिनों बाद यसरिब (जो बाद में मदीना के नाम से जाना जाने लगा) के कुछ लोग अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए। आपने उन्हें इस्लाम के बारे में बताया तो वे मुसलमान हो गए। आपने उनके साथ अपने एक साथी मुसअब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अनहु को भेज दिया कि यसरिब पहुँचकर उन्हें इस्लाम की शिक्षा दें, उनके हाथ पर बहुत-से मदीना वासी मुसलमान हो गए।

यह लोग अगले साल अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और आपके हाथ पर हाथ रखकर इस्लाम पर जमे रहने का संकल्प लिया। इसके बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने उत्पीड़न के शिकार साथियों को मक्का छोड़ मदीना चले जाने का आदेश दिया और लोग समूहों में तथा अकेले जैसे मौक़ा मिला, जाने लगे। इन लोगों को मुहाजिर के नाम से जाना गया। इनका मदीना वासियों ने खुले दिल से स्वागत किया, सम्मान दिया और न केवल अपने घरों में अतिथि के रूप में रखा, बल्कि अपने धन और अपने घरों का भी उनको बराबर हिस्सा दिया। इन लोगों को बाद में अंसार के नाम से जाना गया।

जब क़ुरैश के इस हिजरत के बारे में मालूम हुआ तो आपको जान से मार डालने का निर्णय ले लिया। निर्णय हुआ कि रात में आपके घर को घेर लिया जाए और जब आप निकलें सब मिलकर एक साथ वार करें। लेकिन अल्लाह ने आपको सुरक्षित निकाल लिया और उनको कुछ पता भी न चल सका। अबू बक्र रज़ियल्लाहु अनहु भी आपके साथ मक्का से निकल पड़े, मगर अली रज़ियल्लाहु अनहु को आदेश मिला कि मक्का में रहें और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास जो अमानतें रखी पड़ी थीं, उन्हें उनके मालिकों के हवाले कर दें।

अपनी विफलता देख क़ुरैश ने यह ऐलान कर दिया कि जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को जीवित या मृत पकड़कर लाएगा उसे एक कीमती पुरस्का दिया जाएगा। लेकिन यहां भी अल्लाह ने आपको उनसे बचा लिया। आप अपने साथी अबू बक्र रज़ियल्लाहु अनहु के साथ सुरक्षित मदीना पहुँच गए।

मदीना वासियों ने आपका भव्य स्वागत किया। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के स्वागत में सारे लोग घरों से निकल पड़े और कहने लगे कि अल्लाह के रसूल आ गए, अल्लाह के रसूल आ गए।

अब आपको एक स्थायी निवास मिल गया था। आपने मदीने में सबसे पहले नमाज़ पढ़ने के लिए एक मस्जिद बनाई और लोगों को इस्लाम के विधि-विधान सिखाने लगे, क़ुरआन पढ़ाने लगे और उच्च नैतिकता की शिक्षा देने लगे। आपके साथियों ने भी पूरे मन से आपसे इस्लाम सीखा, अंतरात्मा को विशुद्ध किया और अपने आचरण को उच्च बनाया। उनके दिलों में आपके प्रति अथाह प्रेम की लहरें जोश मारने लगीं, उन्होंने आपके गुणों को अपने अंदर समाहित कर लिया और फलस्वरूप उनके अंदर ईमानी बंधुत्व का संबंध सुदृढ़ हो गया।

इस तरह मदीना सचमुच एक आदर्श मदीना (शहर) बन गया, जो सौभाग्य तथा बंधुत्व के वातावरण में जी रहा था। उसके वासियों में धनी एवं निर्धन, गोरे एवं काले और अरब तथा गैरअरब के बीच कोई भेदभाव नहीं था। एक-दूसरे पर यदि कोई श्रेष्ठता प्राप्त थी, तो केवल ईमान एवं धर्मपरायणता के आधार पर। अल्लाह के इन चयनित बंदों से जो नस्ल बनी, उसे इतिहास की सर्वश्रेष्ट नस्ल होने का गौरव प्राप्त हुआ।

हिजरत के एक साल बाद से अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एवं आपके साथियों तथा क़ुरैश एवं उनके साथ इस्लाम दुश्मनी के मार्ग पर चलने वालों के बीच टकराव एवं युद्ध का सिलसिला शुरू हुआ।

अतः दोनों समूहों के बीच पहला युद्ध हुआ , जिसे बद्र युद्ध के नाम से जाना गया और जो मक्का एवं मदीना के बीच स्थित एक वादी में हुआ, उसमें अल्लाह ने 313 मुसलमानों को क़ुरैश के 1000 योद्धाओं पर शानदार विजय प्रदान की। यह एक बड़ी विजय थी, जिसमें क़ुरैश के 70 लोग मारे गए, जिनमें अधिकतर गणमान्य एवं प्रमुख लोग थे। इसी तरह उनके 70 लोग बंदी बना लिए गए, जबकि बाकी लोग भाग गए।

इसके बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और क़ुरैश के बीच अन्य कई युद्ध हुए तथा अंत में (मक्का से निकलने के आठ वर्ष बाद) अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम 10,000 मुसलमानों के साथ मक्का की ओर निकले और क़ुरैश के विरुद्ध खुद उनके घर में एक शानदार विजय प्राप्त की। आपने अपने उस क़बीला को पराजित किया जिसने आपको जान से मारने की योजना बनाई थी, आपके साथियों को यातनाएँ दी थी और उस धर्म से रोका था, जो आपको अल्लाह की ओर से मिला था।

लेकिन आपने इस ऐतिहासिक विजय के बाद उनको एकत्र किया और कहा:

“क़ुरैश के लोगों! तुम्हें क्या लगता है कि मैं तुम्हारे साथ क्या करूँगा?” उन्होंने उत्तर दिया कि आप एक उदार दिल वाले भाई तथा उदार दिल वाले भाई के बेटे हैं। यह सुन आपने कहा: “जाओ, तुम सब स्वतंत्र हो।” इस तरह आपने उनको माफ़ कर दिया और उन्हें यह आज़ादी दी कि इस्लाम धर्म ग्रहण करना या न करना उनकी मर्ज़ी पर निर्भर है।

यही कारण था कि लोग बहुत बड़ी संख्या में मुसलमान होने लगे और देखते ही देखते पूरा अरब प्रायद्वीप मुसलमान हो गया।

कुछ ही दिनों बाद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज किया, तो आपके साथ 114,000 नए मुसलमान होने वाले लोगों ने हज करने का सौभाग्य प्राप्त किया।

हज के इस पावन अवसर पर आपने अरफ़ा के दिन खड़े होकर खुतबा दिया और लोगों को इस्लाम के विधि-विधान एवं आदेश-निषेध बताए और कहा: हो सकता है कि इस वर्ष के बाद मैं तुमसे दोबारा न मिल सकूँ, अतः यहाँ उपस्थित हर व्यक्ति उन लोगों तक मेरी बात पहुँचा दे जो उपस्थित नहीं हैं। फिर लोगों की ओर देखा और पूछा: क्या मैंने अल्लाह का संदेश पहुँचा दिया है? लोगों ने जब हाँ में उत्तर दिया तो बोले: ऐ अल्लाह! तू गवाह रह। फिर लोगों से पूछा कि क्या मैंने अल्लाह का संदेश पहुँचा दिया है? लोगों ने जब फिर हाँ में उत्तर दिया तो फ़रमाया कि ऐ अल्लाह! तू गवाह रह।

हज के बाद आप मदीना वापस आ गए और एक दिन लोगों को संबोधिक करते हुए कहा: एक बंदे को अल्लाह ने यह विकल्प दिया था कि चाहे तो सदा दुनिया में रहे और चाहे तो अल्लाह के पास जो कुछ है, उसे चुने। उसने अल्लाह के पास जो कुछ है, उसे चुन लिया। यह सुनकर आपके साथी रो पड़े, वह जान गए कि आप अपनी ही बात कर रहे हैं और आपके दुनिया छोड़ने का समय निकट आ गया है। अंततः सोमवार के दिन, 12 रबी अल-अव्वल, 11 हिजरी को आपकी बीमारी बढ़ गई और मृत्यु की निशानियाँ सामने आने लगीं। इस कठिन क्षण में आपने अपने साथियों की ओर विदा होने के अंदाज़ में देखा और उन्हें नमाज़ की पाबंदी करने का आदेश दिया तथा इसके साथ ही मृत्यु को प्राप्त हो गए।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथी आपकी मृत्यु से शोकाकुल हो गए। इस अप्रत्याशित घटना का उनपर इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि उमर रज़ियल्लाहु अनहु घबराकर तलवार लेकर खड़े हो गए और कहने लगे कि जो मुझे यह कहता हुआ मिलेगा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु हो गई है तो मैं उसकी गर्दन उड़ा दूँगा।

यह देख अबू बक्र रज़ियल्लाहु अनहु उठे और उनको अल्लाह का यह कथन याद दिलाया:

“मुह़म्मद केवल एक रसूल हैं, इससे पहले बहुत-से रसूल हो चुके हैं, तो क्या यदि वह मर गए अथवा मार दिए गए तो क्या तुम अपनी एड़ियों के बल फिर जाओगे? तथा जो अपनी एड़ियों के बल फिर जाएगा वह अल्लाह को कुछ हानि नहीं पहुँचाएगा और अल्लाह शीघ्र ही कृतज्ञों को प्रतिफल प्रदान करेगा।”

[सूरह आल-ए-इमरान: 144]

जब उमर रज़ियल्लाहु अनहु ने यह आयत सुनी तो बेहोश होकर गिर पड़े।

यह अंतिम नबी तथा रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं, जिन्हें अल्लाह ने समस्त मानव समाज की ओर शुभ सूचना देने वाला एवं सावधान करने वाला बनाकर भेजा था। आपने अल्लाह का संदेश पहुँचा दिया, उसकी अमानत अदा कर दी और पूरी मानव जाति को अच्छा रास्ता दिखाया।

अल्लाह ने आपकी पवित्र क़ुरआन द्वारा मदद की, जो अल्लाह की वाणी है और जिसे अल्लाह ने आकाश से उतारा है, जिसके

“आगे से और जिसके पीछे से झूठ नहीं आ सकता। तत्वज्ञ, प्रशंसित (अल्लाह) की ओर से उतरा है।

[सूरह फ़ुस्सिलत: 42]

क़ुरआन ऐसा ग्रंथ है कि यदि दुनिया के आरंभ से अंत तक के सारे लोग एकत्र होकर, एक दूसरे का मददगार बनकर उस जैसा कोई ग्रंथ तैयार करने का प्रयास करें, तब भी सफल नहीं हो सकेंगे।

महान अल्लाह ने कहा है:

“हे लोगो! केवल अपने उस पालनहार की इबादत (वंदना) करो, जिसने तुम्हें तथा तुमसे पहले वाले लोगों को पैदा किया है, ताकि तुम धर्मी बन जाओ।

जिसने धरती को तुम्हारे लिए बिछौना तथा आकाश को छत बनाया, और आसमान से पानी बरसाया, फिर उससे तुम्हारे लिए प्रत्येक प्रकार के फल निकाले, तुम्हारे खाने के लिए, अतः, यह जानते हुए भी उसके साझी न बनाओ।

और यदि तुम्हें उसमें कुछ संदेह हो, जो (क़ुरआन) हमने अपने बन्दे पर उतारा है, तो उसके समान कोई सूरह ले आओ? और अपने समर्थकों को भी, जो अल्लाह के सिवा हों, बुला लो, यदि तुम सच्चे हो।

और यदि यह न कर सको, तथा तुम ऐसा कभी कर भी न सकोगे, तो उस अग्नि (नरक) से डरो, जिसका ईंधन इंसान तथा पत्थर होंगे, और इसे काफिरों के लिए तैयार किया गया है।

“(हे नबी!) उन लोगों को शुभ सूचना दे दो जो ईमान लाए तथा अच्छा काम किए कि उनके लिए ऐसे स्वर्ग हैं, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। जब उनका कोई भी फल उन्हें दिया जाएगा तो कहेंगे: यह तो वही है जो इससे पहले हमें दिया गया और उन्हें समरूप फल दिए जाएँगे तथा उनके लिए उनमें निर्मल पत्नियाँ होंगी और वे उनमें सदैव रहेंगे।”

[सूरह अल-बक़रा: 21-25]

क़ुरआन के अंदर एक सौ चौदह सूरह और छह हज़ार से अधिक आयतें हैं। अल्लाह ने हर युग के मानव संप्रदाय को चुनौती दे रखी है कि क़ुरआन की सूरतों जैसी एक छोटी-सी सूरत ही लाकर दिखाएँ, हालाँकि उसकी सबसे छोटी सूरत केवल तीन आयतों से बनी है।

अगर वे ऐसा कर दें तो इसका अर्थ यह होगा कि क़ुरआन अल्लाह की वाणी नहीं है। दरअसल क़ुरआन अल्लाह की ओर से अपने रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को प्रदान किए गए बड़े चमत्कारों में से है, जैसा कि उसने अपने नबी को और भी कई चमत्कार दिए थे, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

ङ- अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को प्रदान किए गए चमत्कार:

1- आप ने बरतन में हाथ रखकर अल्लाह से दुआ की तो आपकी उंगलियों के बीच से पानी के सोते फूट पड़े, जिससे एक हज़ार से अधिक सिपाहियों वाली सेना ने अपनी प्यास बुझाई।

2- आप ने भोजन में हाथ रखकर अल्लाह से दुआ की, तो एक प्लेट खाना इतना बढ़ गया कि उससे पंद्रह सौ सहाबा ने खाया ।

3- आप ने आकाश की ओर अपने हाथों को उठाकर अल्लाह से बारिश की दुआ की,तो कुछ ही क्षणों में बारिश शुरू हो गई। इसके अतिरिक्त भी आपको अन्य कई चमत्कार प्रदान किए गए थे।

अल्लाह ने आपकी सुरक्षा की ज़िम्मेवारी खुद ले रखी थी, फलस्वरूप आपको जान से मारने और अल्लाह की ओर से लाए हुए प्रकाश को बुझाने का इरादा रखने वाला कोई व्यक्ति आप तक पहुँच नहीं पाता था। उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है:

“हे रसूल! जो कुछ आप पर आपके पालनहार की ओर से उतारा गया है, उसे (सबको) पहुँचा दें और यदि ऐसा नहीं किया तो आपने उसका संदेश नहीं पहुँचाया और अल्लाह लोगों (विरोधियों) से आपकी रक्षा करेगा।”

[सूरह अल-माइदा: 67]

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, अल्लाह की मदद से, अपने सभी कर्मों एवं कथनों में एक उत्तम आदर्श थे, आप अपने उपर उतरने वाले अल्लाह के आदेशों का सर्वप्रथम लागू करने वाले व्यक्ति थे, इबादतों एवं आज्ञापालन के मामला में तमाम लोगों में सबसे पहले थे, सबसे दानशील थे, अपने हाथ में जो कुछ होता उसे अल्लाह की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए गरीबों एवं निर्धनों में बाँट देते थे, बल्कि आपने अपनी मीरास तक को दान कर दिया। अपने साथियों से कहा था:

“हम नबियों का कोई वारिस नहीं होता, हम जो कुछ छोड़ जाते हैं, वह सदक़ा होता है।”[2]

[2] मुसनद अहमद (2/463)। मुसनद के शोध (19/92) में अहमद शाकिर के कथानुसार इसकी सनद सहीह है। “मेरे वारिस एक दीनार भी बाँट कर नहीं लेेंगे। मैं अपनी स्त्रियों के भरण-पोषण एवं काम करने वाले (उत्तराधिकारी अर्थाथ खलीफा ) के खर्च के बाद जो भी छोड़ जाऊँ, वह सदक़ा है।”

जहाँ तक आपके आचरण की बात है, तो उस ऊँचाई तक पहुँचना किसी के वश की बात नहीं है। जो भी आपके साथ रहता दिल से आपको चाहने लगता और आप उसके निकट, उसकी संतान, माता-पिता एवं अन्य सभी लोगों से प्रिय बन जाते।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सेवक अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अनहु कहते हैं: “मैंने कोई ऐसी हथेली नहीं छूई, जो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हथेली से अधिक पवित्र, नर्म एवं सुगंधित हो। मैंने दस साल आपकी सेवा की लेकिन आप ने कभी किसी काम के करने पर यह नहीं कहा कि तू ने इसे क्यों किया और न किसी काम के न करने पर यह कहा कि तूने इसे क्यों नहीं किया।” [3]

[3] सहीह बुख़ारी (4/230)

यह हैं अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम, जिनके मरतबा को अल्लाह ने ऊँचा किया है और सारे संसार में उनके ज़िक्र को बुलंद रखा है। न तो आज दुनिया में किसी इन्सान को आपकी तरह याद किया जाता है और न आज से पहले किसी को इस तरह याद किया गया है। चौदह सौ वर्षों से धरती के हर भाग में प्रत्येक दिन पाँच बार लोखों मीनारों से यह आवाज़ बुलंद होती आ रही है “मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं।” और करोड़ों मुसलमान हर दिन दर्जनों बार अपनी नमाज़ों में आप के अल्लाह के रसूल होने की गवाही देते हैं।

च- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सम्मानित साथी

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सम्मानित साथियों ने आपकी मृत्यु के बाद आपके आह्वान का झंडा उठाया और उसे लेकर हर दिशा में फैल गए। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि वे इस धर्म के सबसे अच्छे आह्वान कर्ता थे। वे सबसे सच्चे, न्यायप्रिय, अमानतदार, लोगों को सत्य का मार्ग दिखाने वाले तथा उनके बीच भलाई को प्रचलित करने के इच्छुक लोग थे।

वह नबियों के आचरण तथा उनके गुणों से सुशोभित थे, इस उच्च आचरण का दुनिया की क़ौमों का इस धर्म में प्रवेश करने पर व्यापक प्रभाव रहा, और पश्चिम अफ़्रीका से पूर्वी एशिया एवं मध्य यूरोप तक के लोग बड़ी संख्या में बिना किसी दबाव के स्वेच्छा से इस धर्म में दाख़िल हो गए।

अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ये सहाबा नबियों के बाद मानव जाति के सबसे उत्तम लोग हैं। इनमें सबसे अधिक ख्याति उन चार सत्य के मार्ग पर चलने वाले सहाबा को प्राप्त हुआ, जिन्होंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की मृत्यु के बाद इस्लामी दुनिया पर हुकूमत की। ये चाहर सहाबा इस प्रकार हैं:

1- अबू बक्र सिद्दीक़

2- उमर बिन ख़त्ताब

3- उसमान बिन अफ़्फ़ान

4- अली बिन अबू तालिब

एक मुसलमान उनके प्रति अपना सम्मान व्यक्त करता है और उन्हें उनका उचित स्थान देता है तथा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एवं आपके साथियों (स्त्री पुरूष) से प्रेम, उनकी इज़्ज़त एवं सम्मान द्वारा अल्लाह की निकटता प्राप्त करता है।

मुसलमान सहाबा से द्वेष नहीं रखता और न उनका किसी प्रकार का अपमान करता है, मगर वही करता है जो काफिर हो यद्यपि वह मुस्लिम होने का दावा करे। अल्लाह ने उनकी प्रशंसा इन शब्दों में की है:

“तुम सर्वश्रेष्ठ उम्मत हो, जो लोगों के लिए पैदा की गई है कि तुम सत्कर्मों का आदेश देते हो और कुकर्मों से रोकते हो और अल्लाह तआला पर ईमान रखते हो।”

[सूरह आल-ए-इमरान: 110]

तथा जब उन्होंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के हाथ में हाथ देकर प्रतिज्ञा ली, तो अल्लाह ने उनसे अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा:

“अल्लाह ईमान वालों से प्रसन्न हो गया जब वे वृक्ष के नीचे आप (नबी) से बैअत कर रहे थे। उसने (अल्लाह ने ) जान लिया जो कुछ उनके दिलों में था, इसलिए उनपर शांति उतार दी तथा उन्हें बदले में एक क़रीबी विजय प्रदान की।”

[सूरह अल-फ़त्ह: 18]

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