2- मुह़म्मद अल्लाह के रसूल हैं:
मुहम्मद -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के रसूल होने पर ईमान इस्लाम के पाँच स्तंभों में से सबसे बुनियादी स्तंभ का दूसरा भाग तथा मूल सिद्धांत है जिसपर इस्लाम का आधार खड़ा है।
कोई व्यक्ति उस समय मुसलमान होता है जब वह अपनी ज़बान से यह दोनों गवाहियाँ दे, वह गवाही दे कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं है तथा इस बात की गवाही दे कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं।
क- लेकिन अब प्रश्न यह है कि रसूल का अर्थ क्या है, मुहम्मद कौन हैं और क्या उनके अलावा भी रसूल हैं?
हम इन आगे के पृष्ठों में इन्हीं प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करेंगे।
रसूल एक उच्च कोटि का सत्यवादी एवं चरित्रवान व्यक्ति होता है। उसे अल्लाह लोगों में से चुन लेता है और अपनी इच्छा अनुसार उसकी ओर धर्म के आदेश-निषेध या ग़ैब की बातें वह्यी करता है तथा इन बातों को लोगों को पहुँचाने का उसे आदेश देता है। इस प्रकार रसूल अन्य इन्सानों की तरह ही एक इन्सान होता है। उन्हीं की तरह खाता-पीता है और उसे भी उन चीज़ों की ज़रूरत होती है जिनकी ज़रूरत अन्य इन्सानों को होती है। लेकिन आम लोगों से वह इस बात में अलग होता है कि उसके पास अल्लाह के यहाँ से वह्यी आती है और अल्लाह उसे अपनी इच्छा अनुसार कुछ ग़ैब की बातों एवं धर्म के विधि-विधानों से सूचित कर देता है, ताकि लोगों को बता दे। वह अन्य लोगों से इस बात में भी भिन्न होता है कि उसे अल्लाह बड़े गुनाहों एवं ऐसे कार्यों से सुरक्षित रखता है, जो लोगों को अल्लाह का संदेश पहुँचाने में बाधा उत्पन्न करने का काम करें।
यहाँ हम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से पहले के कुछ रसूलों के क़िस्से नक़ल कर रहे हैं, ताकि यह स्पष्ट हो जाए कि सारे रसूलों का संदेश एक ही है और वह है, केवल एक अल्लाह की इबादत का आह्वान करना। हम सबसे पहले मानव की सृष्टि के आरंभ और मानव पिता आदम तथा उनकी संतान से शैतान की दुश्मनी का हाल बयान करेंगे।