इस्लाम धर्म

क़ुरआन एवं हदीस के आलोक में

1- कलिमा-ए-तौहदी (ला इलाहा इल्लल्लाह)

इस्लाम धर्म का मूल आधार कलिमा-ए-तौहदीस “ला इलाहा इल्लल्लाहु” है। इस सशक्त आधार के बिना इस्लाम का विशाल भवन खड़ा नहीं हो सकता। यह प्रथम शब्द समूह है जिसे किसी भी इस्लाम में प्रवेश करने वाले व्यक्ति के लिए, उसपर विश्वास रखते हुए और उसके सारे अर्थों व तात्परयों पर आस्था रखते हुए ज़बान से बोलना ज़रूरी है। “ला इलाहा इल्लल्लाहु” का अर्थ क्या है?

“ला इलाहा इल्लल्लाह” का अर्थ है:

– इस कायनात का सृष्टिकर्ता कोई नहीं मगर अल्लाह है।

– इस जगत का मालिक एवं संचालक कोई नहीं मगर अल्लाह है।

– अल्लाह के अलावा कोई भी उपासना का हक़दार नहीं है।

अल्लाह ही ने इस विशाल, सुंदर और अनूठे ब्रह्मांड को पैदा किया है। यह आकाश, अपने विशाल तारा मंडल और ग्रहों के साथ, एक विस्तृत प्रणाली अद्भुत गति में घूम रहा है, उन्हें अल्लाह ही ने थाम रखा है। यह धरती एवं उसके पर्वत, वादियाँ, झरने और नहरें, पेड़-पौधे एवं लहलहाती फसलें, हवा एवं पानी, थल एवं समुद्र, दिन एवं रात, और इसमें रहने एवं चलने वाली चीजें, सबको अल्लाह ने ही पैदा किया है, और उन्हें अनस्तित्व से अस्तित्व में लाया है।

महान अल्लाह ने अपनी पवित्र किताब में कहा है:

“तथा सूर्य अपनी मंज़िल की तरफ चलता रहता है, यह प्रबंध उस अल्लाह का निर्धारित किया हुआ है जो बड़ा प्रभुत्वशाली एवं सर्वज्ञ है।

तथा हमने चन्द्रमा की मंजिलें निर्धारित कर दी हैं, यहाँ तक कि फिर वह खजूर की पुरानी, पतली डाली के समान हो जाता है।

न तो सूर्य के लिए ही संभव है कि वह चन्द्रमा को पा ले और न रात दिन से पहले आ सकता है, सब एक खगोल में तैर रहे हैं।

[सूरह यासीन: 38-40]

“तथा हमने धरती को फैला दिया है, और उसमें पर्वत के कील गाड़ दिए तथा उस में हर प्रकार के सुन्दर पौदे उगा दिए हैं।

इन बातों में अल्लाह की तरफ लौट कर आने वालों के लिए शिक्षा एवं सदुपदेश है।

तथा हमने आकाश से शुभ जल उतारा, फिर उसके द्वारा हमने बाग़ीचे तथा खेतों के दाने उगाए।

तथा खजूर के ऊँचे वृक्ष, जिनके गुच्छे गुथे हुए हैं।”

[सूरह क़ाफ़: 7-10]

यह सारी चीज़ें अल्लाह की बनाई हुई हैं। उसने धरती को निवास के लायक़ बनाया और उसमें अवशोषित करने की उतनी ही विशेषता प्रदान की जितनी जीवन को आवश्यकता हो। उसमें न इतनी अधिक कशिश होती है कि चलना-फिरना कठिन हो जाए और न इतना कम कि जनतू का उसमें ठहरना मुशकिल हो जाए। उसने हर चीज़ को एक विशेष परिमाण में रखा है।

उसने आकाश से शुद्ध जल उतारा, जिसके बिना जीवन का अस्तित्व संभव नहीं है।

“तथा हमने पानी से प्रत्येक जीवित चीज़ को बनाया।”

[सूरह अल-अंबिया: 30]

फिर अल्लाह ने उससे पौधे एवं फल उगाए, जानवरों एवं इन्सान के लिए पीने का प्रबंध किया, ज़मीन को उसे संग्रह करने का योग्य बनाया और उसमें नहरें एवं नदियाँ बहा दीं।

इसी तरह उस ने इससे ऐसे बाग़ीचे उगाए जिनके पेड़-पौधे, फल-फूल और ख़ूबसूरती एवं सुंदरता देखती ही बनती है। अल्लाह ही है जिसने अपनी पैदा की हुई हर चीज़ को सुंदर बनाया और मनुष्य की सृष्टि का आरंभ मिट्टी से किया।

पहला इन्सान जिसको अल्लाह ने पैदा किया वह मानव-पिता आदम अलैहिस्सलाम हैं। उन्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर उनके शरीर के सारे अंग ठीक किए, फिर उनको आकार दिया और उनके अंदरआत्मा फूँक दी। फिर उनसे उनकी पत्नी को पैदा किया। फिर एक तुच्छ जल के निचोड़ यानी वीर्य से उनके वंश को आगे बढ़ाया।

महान अल्लाह ने कहा है:

“और हमने मनुष्य को मिट्टी के ठेकरा से उत्पन्न किया है।

फिर हमने उसे वीर्य की सूरत में एक सुरक्षित स्थान में रख दिया।

फिर हमने वीर्य को जमे हुए रक्त में बदल दिया, फिर हमने उसे मांस का लोथड़ा बना दिया, फिर हमने उस लोथड़े को हड्डियोँ में बदल दिया , फिर हमने पहना दिया हड्डियों को मांस, फिर उसे एक अन्य रूप में उत्पन्न कर दिया। तो बरकत वाला है अल्लाह जो सबसे अच्छी उत्पत्ति करने वाला है।”

[सूरह अल-मोमिनून:12-14]

एक अन्य स्थान में उसने कहा है:

“क्या तुमने विचार किया है कि वीर्य की जो बूँद तुम (गर्भाशय में) गिराते हो।

तुम उसे पैदा करते है या हम उसके पैदा करने वाले हैं?

हमने तुम्हारे बीच मौत को निर्धारित किया है तथा हम से कोई आगे होने वाला नहीं है।

इस बारे में कि हम तुम्हारी जगह तुम्हारे जैसा किसी दूसरे को ले आएं, और तुम्हें पैदा करें ऐसी शकल में जिसकी तुम्हें ख़बर नहीं हो।”

[सूरह अल-वाक़िआ: 58-61]

ज़रा इस बात पर विचार कीजिए कि अल्लाह ने आपको कैसे पैदा किया है। आपको जटिल उपकरणों एवं सुदृढ़ प्रणालियों की एक अद्भुत दुनिया मिलेगी, जिनके बारे में आपकी जानकारी बहुत ही सीमित है। आपके शरीर में भोजन को पचाने का एक संपूर्ण यंत्र मौजूद है, जो मुँह से शुरू होता है। मुँह भोजन के छोटे-छोटे टुकड़े बना देता है, ताकि आसानी से हज़म हो जाए। फिर निवाला ग्रसनी में पहुँचता है और उसके बाद ग्रसिका में डाला जाता है। अलिजिह्वा निवाला के लिए ग्रासनली का द्वार खोल देती तथा श्वासनली का द्वार बंद कर देती है और निवाला धीरे धीरे हिलते रहने वाली अन्ननली के माध्यम से आमाशय में पहुँच जाता है।

आमाशय में पाचन प्रक्रिया निरंतर जारी रहती है, यहाँ तक कि जब भोजन तरल पदार्थ में बदल जाता है, तो उसके लिए आमाशय का निचला द्वार खुलता है और वह ग्रहणी की ओर बढ़ जाता है, जहाँ पाचन प्रक्रिया जारी रहती है। पाचन प्रक्रिया नाम है भोजन के कच्चे तत्व का शरीर की कोषिकाओं के पोषण के लिए उपयुक्त तत्व में बदलने का।

फिर वहाँ से भोजन छोटी आँतों में चला जाता है, जहाँ शेष पाचन प्रक्रिया पूरी होती है और यहाँ आकर भोजन ऐसा रूप धारण कर लेता है कि आंतों में मौजूद ग्रंथियों के माध्यम से उसे अवशोषित किया जा सके, ताकि वह रक्त के प्रवाह के साथ प्रवाहित हो सके।

आपको रक्त के परिसंचरण का भी एक एकीकृत तंत्र मिलेगा, जो ऐसी जटिल धमनियों में फैला हुआ होता है कि यदि उन्हें अलग-अलग कर दिया जाए तो उनकी लंबाई हज़ारों किलोमीटर से भी अधिक हो। ये सारी धमनियाँ एक केंद्रिय पंपिंग स्टेशन से जुड़ी होती हैं, जिसे हृदय कहा जाता है, जो धमनियों के माध्यम से रक्त को परिसंचरित करते हुए थकता नहीं है।

शरीर में काम करने वाला तीसरा तंत्र श्वसन तंत्र है, चौथा तंत्र तंत्रिकाओं का, पाँचवाँ तंत्र अनुपयुक्त चीज़ों को बाहर निकालने का है। इसी तरह और भी बहुत से तंत्र मौजूद हैं, जिनके बारे में प्रति दिन हमारी जानकारी में वृद्धि होती जा रही है। उनके बारे में हमें जिन बातों का ज्ञान नहीं है, वह उससे कहीं अधिक है जिनका ज्ञान है। भला अल्लाह के सिवा कौन है जिसने इन्सान को इस सुनियोजित रूप से पैदा किया है?

इन्हीं बातों के मद्देनज़र, इस कायनात का सबसे बड़ा गुनाह यह है कि तुम किसी को अल्लाह का समक्ष बनाओ जबकि उसने तुम्हें पैदा किया है।

ज़रा कभी खुले दिल से और स्वच्छ आत्मा के साथ अल्लाह की कारिगरी पर ग़ौर करो। इस हवा को देखो, जो तुम्हारे सांस लेने के काम आती है और हर स्थान पर उपलब्ध है, और कमाल यह कि दिखाई भी नहीं देती। यदि कुछ क्षणों के लिए भी उपलब्ध न हो तो जीवन का अंत हो जाए। इस पानी को देखो, जिसे तुम पीते हो। इस भोजन को देखो जो तुम खाते हो। इस इन्सान को देखो जिससे तुम प्यार करते हो। इस धरती को देखो जिस पर तुम चलते हो। इस आकाश को देखो जिसे तुम्हारी आँखें देखती हैं। सारी छोटी-बड़ी सृष्टियाँ, जिन्हें तुम्हारी आँखें देख पाती हैं और जिन्हें तुम्हारी आँखें देख नहीं पाती, सब उस अल्लाह की रचना हैं, जो पैदा करने में निपुण एवं सब कुछ जानने वाला है।

अल्लाह की सृष्टियों पर ग़ौर करने से हमें उसकी महानता एवं अपार क्षमता का अनुभव होता है। निस्संदेह सबसे बड़ा मूर्ख, अज्ञान एवं पथभ्रष्ट व्यक्ति वह है,जो इस अनूठी, विशाल, सामंजस्यपूर्ण एवं परिपूर्ण रचना को देखे, जो शानदार ज्ञान एवं पूर्ण शक्ति का प्रतीक है, लेकिन उसके बाद भी उस रचनाकार पर ईमान न लाए जिसने इसे अनस्तित्व से अस्तित्व प्रदान किया है।

“क्या वे बिना किसी के पैदा किए ही पैदा हो गए हैं या वे स्वयं पैदा करने वाले हैं?

या उन्होंने ही आकाशों तथा धरती की उत्पत्ति की है? वास्तव में, वे विश्वास ही नहीं रखते।”

[सूरह अत-तूर: 35-36]

इस बात में कहीं कोई संदेह नहीं है कि इन्सान की स्वच्छ प्रवृत्ति पवित्र एवं महान अल्लाह को पहचानती है और इसके लिए शिक्षा की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि अल्लाह ने उसकी रचना के समय ही उसमें अपनी ओर आकर्षित होने की प्रवृत्ति डाल दी है। यह अलग बात है कि उसे इस मार्ग से हटा और सत्य से दूर कर दिया जाता है।

यही कारण है कि जब उसे किसी आपदा, महामारी, गंभीर परिस्थिति या संकट का सामना होता है या जल या थल में वह किसी खतरे से दोचार होता है, तो सीधे अल्लाह से संपर्क साधता है और उसी से मदद एवं छुटकारा की गुहार लगाता है। अल्लाह ही संकटग्रस्त व्यक्ति की पुकार को सुनता है और उसकी परेशानी दूर करता है।

यह महान स्रष्टा सारी चीज़ों से बड़ा है। उसकी तुलना किसी सृष्टि के साथ नहीं की जा सकती है। वह ऐसा महान है कि उसकी महानता की कोई सीमा नहीं है और कोई उसके इल्म का इहाता नहीं कर सकता, वह उलु (उच्च) की विशेषता से वर्णित अपनी सृष्टि से ऊँचा और अपने बनाए हुए आकाशों के ऊपर है।

“उस जैसा कोई नहीं और वह सुनने वाला, देखने वाला है।”

[सूरह अश्-शूरा: 11]

उसकी कोई सृष्टि उसके समान नहीं है और तुम्हारे दिल में जो कल्पना आए, अल्लाह उससे भिन्न है।

वह आसमानों के ऊपर से हमें देख रहा है, लेकिन हम उसे नहीं देख सकते।

हमारी आँखें उसको नहीं देख सकतीं जबकि वह सब कुछ देख रहा है। वह अत्यंत सूक्ष्मदर्शि एवं सब ख़बर रखने वाला है।

[सूरह अल-अनआम: 103]

सच्चाई यह है कि हमारी इंद्रियाँ और क्षमताएँ इस योग्य नहीं हैं कि हम उसे इस दुनिया में देख सके।

अल्लाह के एक नबी मूसा अलैहिस्सलाम से जब अल्लाह तूर पर्वत के निकट बात कर रहा था तो उन्होंने मांग की, हे अल्लाह! मुझे अपने दर्शन करा दो, मैं तुम्हें देखना चाहता हूँ, तो अल्लाह ने उनसे कहा:

“तुम मुझे नहीं देख सकते, परन्तु इस पर्वत की ओर देखो , यदि यह अपने स्थान पर स्थिर रह गया तो तुम मुझे देख सकते हो। फिर जब उसका रब पर्वत की ओर प्रकाशित हुआ तो उसे चूर-चूर कर दिया और मूसा बेहोश होकर गिर पड़े। फिर जब होश आया तो उनहोंने कहा: तू पवित्र है! मैं तुमसे क्षमा माँगता हूँ, तथा मैं सर्व प्रथम ईमान लाने वालों में से हूँ।”

[सूरह अल-आराफ़: 143]

जब एक विशाल और बहुत बड़ा पहाड़ अल्लाह की तजल्ली के कारण ढह गया और टूट-फूटकर बिखर बिखर गया, तो इन्सान कमज़ोर एवं दुर्बल रचना के साथ उसका सामना कैसे कर सकता है?

पवित्र एवं उच्च अल्लाह के गुणों में से एक गुण उसका हर चीज़ पर सामर्थ्य रखना है।

“तथा अल्लाह ऐसा नहीं कि आकाशों एवं धरती में कोई वस्तु उसे विवश कर सके।”

[सूरह अल-फ़ातिर: 44]

उसी के हाथ में जीवन एवं मरण है, प्रत्येक सृष्टि को उसकी ज़रूरत है, लेकिन उसे किसी की ज़रूरत नहीं है। अल्लाह ने कहा है:

“हे मनुष्य! तुम सभी अल्लाह के मोहताज हो तथा अल्लाह ही धनी एवं प्रशंसनीयहै।”

[सूरह अल-फ़ातिर: 15]

उसके गुणों से एक गुण यह है कि उसका ज्ञान हर चीज़ को शामिल है:

“और उसी (अल्लाह) के पास ग़ैब (परोक्ष) की कुंजियाँ हैं, उन्हें केवल वही जानता है, तथा जो कुछ थल और जल में है वह सबका ज्ञान रखता है, और कोई पत्ता नहीं गिरता है परन्तु उसे वह जानता है, और न कोई दाना जो धरती के अंधेरों में गिरता है, और न कोई आर्द्र (भीगा) और न कोई शुष्क (सूखा), परन्तु सब उसकी रोशन किताब में मौजूद है।”

[सूरह अल-अनआम: 59]

हमारे मुँह से कही हुई बातों, और हमारे अंगों से के द्वारा किए गए कार्यों, बल्कि हमारे दिलों में छुपे हुए राज़ों को भी वह जानता है।

“वह जानता है आँखों की चोरी तथा उन भेदों को भी जो सीने के अंदर दफन हैं।”

[सूरह ग़ाफ़िर: 19]

अल्लाह हमारे बारे में हर चीज़ को जानता है एवं हमारी हालतों से अवगत है। धरती एवं आकाश की कोई भी चीज़ उससे छुपी नहीं है। वह न अचेत होता है, न भूलता है और न सोता है। अल्लाह ने कहा है:

“अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं, वह सदा ज़िन्दा एवं नित्य स्थाई है। उसे ऊँघ या नींद नहीं आती। आकाश और धरती में जो कुछ है, सब उसी का है। कौन है, जो उसके पास उसकी अनुमति के बिना अनुशंसा (सिफ़ारिश) कर सके? जो कुछ उनके समक्ष और जो कुछ उनसे ओझल है, सब जानता है। लोग उसके ज्ञान में से उतना ही जान सकते हैं, जितना वह चाहे। उसकी कुर्सी आकाश तथा धरती को समोए हुए है। उन दोनों की रक्षा उसे नहीं थकाती। वही सर्वोच्च एवं महान है।”

[सूरह अल-बक़रा: 255]

वह सारे संपूर्ण गुणों से परिपूर्ण है, उसके अंदर न कोई कमी है, न कोई दोष।

उस के अच्छ-अच्छे नाम और उच्च स्तरीय गुण भी हैं। उसने कहा है:

“और अल्लाह ही के शुभ नाम हैं, अतः उसे उन्हीं के नामों से पुकारो और उन लोगों को छोड़ दो जो उसके नामों में परिवर्तन करते हैं, उन्हें शीघ्र ही उनके कुकर्मों का बदला दिया जाएगा।”

[सूरह अल-आराफ़: 180]

और वह पवित्र अल्लाह, उसके राज्य में कोई उसका साझी नहीं है, उसका कोई समकक्ष एवं सहायक भी नहीं है।

वह पत्नी एवं संतान से पाक है, बल्किउसे इन सब की कोई ज़रूरत नहीं है। उसी ने कहा है:

“(हे नब़ी!) कह दोः अल्लाह अकेला है।

अल्लाह बेनियाज़ है।

न उसका कोई संतान है और न वह किसी का संतान है।

और न कोई उसके बराबर है।”

[सूरह अल-इख़लास: 1-4]

महान अल्लाह ने कहा है:

“तथा उन्होंने कहा कि रहमान (अत्यंत कृपाशील) ने अपने लिए एक पुत्र बना लिया है।

वास्तव में तुम लोग ने यह कहकर एक भारी गुनाह किया है।

समीप है कि इस इल्ज़ाम के कारण आकाश फट पड़े तथा धरती में दरार पड़ जाए और पर्वत के टुकड़े टुकड़े हो जाए।

इस लिए कि वे लोग अल्लाह के लिए संतान सिद्ध करते हैं।

तथा रहमान के लिए यह उचित ही नहीं है कि वह कोई संतान बनाए।

आकाशों तथा धरती में जितने हैं, सब रहमान (अल्लाह) के सामने बंदे की हैसियत से आने वाले हैं।”

[सूरह मरयम: 88-93]

वह पवित्र अल्लाह ऐश्वर्य, सौंदर्य, शक्ति, महानता, अभिमान, राजत्व और प्रभुत्वशाली के गुणों से युक्त है।

इसी तरह वह उदारता, क्षमा, दया एवं परोपकार के गुणों का भी मालिक है।वह सबसे रहमान (दयालु) है, जिसकी दया हर चीज़ को शामिल है।

वह ‘रहीम’ (कृपावान) है, जिसकी कृपा उसके क्रोध से आगे है।

वहकरीम (दानशील) है, जिसकी दानशीलता असीम है और उसके खज़ाने कभी ख़त्म नहीं होते।

उसके सारे नाम सुंदर हैं, जो पूर्ण पूर्णता के गुणों को दर्शाते हैं और जो अल्लाह के अलावा किसी और पर सिद्ध नहीं होते हैं।

उसके गुणों से अवगत होना दिल में उसके लिए प्रेम, सम्मान, उसका भय एवं उसके प्रति विनम्रता की भावनाओं को बढ़ा देता है।

इस प्रकार, ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ के मायने यह हुए कि किसी भी प्रकार की उपासना अल्लाह के अतिरिक्त किसी और के लिए नहीं की जाएगी। क्योंकि सत्य पूज्य केवल अल्लाह है। उसमें पूज्य होने और पूर्णता के गुणों की विशेषता है, वह सृष्टिकर्ता, प्रदाता, उपकारी, जीवन व मरन देने वाला है, और अपनी सृष्टि पर उपकार करने वाला है। अतः केवल वही इबादत का हक़दार है और उसका कोई साझी नहीं है।

जिसने अल्लाह की इबादत से इनकार किया या उसके अतिरिक्त किसी और की पूजा की, उसने शिर्क एवं कुफ़्र किया।

अतः सजदा, रुकू, झुकना और नमाज़ आदि चीज़ें केवल अल्लाह के लिए होनी चाहिएँ।

फ़रियाद केवल उसी से की जाएगी, दुआ केवल उसी से माँगी जाएगी, ज़रूरत की चीज़ें केवल उसी से तलब की जाएँगी और नज़र व नियाज़, क़ुर्बानी, आज्ञापालन एवं उपासना के ज़रिए निकटता केवल उसी की प्राप्त की जाएगी:

“आप कह दें कि निश्चय मेरी नमाज़, मेरी क़ुर्बानी तथा मेरा जीवन-मरण सारे संसार के पालनहार अल्लाह के लिए है।

जिसका कोई साझी नहीं तथा मुझे इसी का आदेश दिया गया है और मैं प्रथम मुसलमानों में से हूँ।”

[सूरह अल-अनआम: 162-163]

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