ङ- और अंत में बस इतना बता दूँ कि
यही वह इस्लाम धर्म है जो एलान करता है कि एकमात्र पुज्य उच्च एवं महान अल्लाह है। इसका प्रतीक ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ है। यही वह इस्लाम है जिसे अल्लाह ने अपने बंदों के लिए धर्म के रूप में पसंद किया है।
“मैंने आज तुम्हारे लिए तुम्हारे धर्म को संपूर्ण कर दिया तथा तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी है और तुम्हारे लिए इस्लाम को धर्म स्वरूप चुन लिया है।”
[सूरह अल-माइदा: 3]
यही वह इस्लाम धर्म है जिसके अतिरिक्त अल्लाह किसी से किसी धर्म को ग्रहण नहीं करता।
“और जो भी इस्लाम के सिवा (किसी और धर्म) को अपनाएगा, उसे उसकी तरफ़ से कदापि स्वीकार नहीं किया जाएगा और वह परलोक में घाटा उठाने वालों में से होगा।”
[सूरह आल-ए-इमरान: 85]
यही वह इस्लाम धर्म है जिसपर ईमान रखने वाला एवं सत्कर्म करने वाला जन्नत का हक़दार बनेगा।
“निश्चय जो ईमान लाए और सदाचार किए, उन्हीं के लिए फ़िरदौस के बाग़ होंगे।
उसमें वे सदावासी होंगे, उसे छोड़कर जाना नहीं चाहेंगे।”
[सूरह अल-कह्फ़: 107-108]
यही वह इस्लाम धर्म है जिसपर किसी एक वर्ग का एकाधिकार नहीं है और जो किसी नस्ल विशेष के लोगों के लिए खास नहीं है। जिसने इसे माना और इसकी ओर लोगों को बुलाया वही इसका हक़दार है और अल्लाह के निकट सबसे सम्मानित है। अल्लाह ने कहा है:
“अल्लाह के निकट तुम में सबसे अधिक सम्मानित सब से अधिक तक़वा (अल्लाह के आदेश- निषेध के अनुसार जीवन बिताने) वाला है।”
[सूरह अल-हुजुरात: 13]
हम यहाँ अपने सम्मानित पाठक का ध्यान कुछ ऐसी बातों की ओर आकर्षित करना चाहते हैं जो इस धर्म को समझने और इसमें प्रवेश करने से रोकती हैं:
1- इस्लाम धर्म, अर्थात उसके अक़ीदा, शरीयत एवं शिष्टाचारों से अज्ञानता। मशहूर कहावत है कि जो जिस चीज़ से अज्ञान होते हैं उसके दुश्मन बन जाते हैं। इसलिए जो व्यक्ति इस्लाम धर्म को जानना चाहता है उसे इसके बारे में अधिक से अधिक पढ़ना चाहिए, इस धर्म की जानकारी उसके मूल स्रोतों से प्राप्त करें। साथ ही ज़रूरी है कि पढ़ने का काम पूर्ण निष्पक्षता से करें।
2- धर्म, परंपराओं एवं संस्कृतियों का अंधा पक्षपात, जिनमें इन्सान पला-बढ़ा होता है। जब पक्षपात की यह भावना जागृत होती है, तो इन्सान अपने पूर्वजों के धर्म के अतिरिक्त अन्य सारे धर्मों को ठुकरा देता है। पक्षपात की भावना इन्सान को अंधा और बहरा बना देती है और उसके विवेक पर ताला डाल देती है। ऐसे में इन्सान आज़ाद होकर कुछ नहीं सोचता और प्रकाश एवं अंधेरे के बीच अंतर नहीं कर पाता।
3- इन्सान की इच्छाएँ, चाहतें एवं आकांक्षाएँ। यह चीज़ें इन्सान के सोचने और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करती हैं, अनजाने में उसको बर्बाद करती रहती हैं और उसे पूरी शक्ति से सत्य को ग्रहण करने और उसे मानने से रोकती हैं।
4- मुसलमानों के यहाँ पाए जाने वाली कुछ ऐसी ग़लतियाँ, बिगाड़ एवं गैर-इस्लामी कार्य, जिन्हें इस्लाम से जोड़ दिया गया है, हालाँकि इस्लाम का उनसे कोई लेना-देना नहीं है। यहाँ यह बात सब को याद रखनी चाहिए कि अल्लाह का धर्म लोगों की ग़लतियों का ज़िम्मेवार नहीं है।
सत्य की प्राप्ति का सबसे आसान तरीक़ा यह है कि इन्सान दिल से अल्लाह की ओर लौट कर आए, और उससे गिड़गिड़ा कर दुआ करे कि ऐ अल्लाह! मुझे वह सीधा मार्ग एवं सत्य धर्म दिखा जिसे तू पसंद करता है और जिस से तू खुश होता है। इससे बंदे को सुखमय जीवन और ऐसी अनंत खुशी प्राप्त होती है कि फिर कभी दुखी नहीं होता। याद रहे कि जब कोई बंदा अल्लाह को पुकारता है तो वह उसकी पुकार ज़रूर सुनता है। अल्लाह तआला ने कहा है:
“(हे नबी!) यदि आप से मेरे बंदे मेरे बारे में प्रश्न करें तो उन्हें बता दें कि निश्चय ही मैं क़रीब हूँ, मैं प्रार्थी की प्रार्थना का उत्तर देता हूँ। अतः, उन्हें भी चाहिए कि मेरे आज्ञाकारी बनें तथा मुझपर ईमान (विश्वास) रखें, ताकि वे सीधी राह पाएँ।”
[सूरह अल-बक़रा: 186]
अल्लाह की कृपा से यह पुस्तक संपन्न हुई।