ग- नूह अलैहिस्सलाम:
नूह तथा आदम के बीच दस पीढ़ियों का फ़ासला था। जब लोग पथभ्रष्ट हो गए और अल्लाह को छोड़ अन्य लोगों, मूर्तियों, पत्थरों एवं क़ब्रों की पूजा करने लगे, तो अल्लाह ने उनको भेजा। उनके सबसे प्रसिद्ध पूज्य वद्द, सुवा, यग़ूस एवं यऊक़ थे। ऐसी परिस्थिति में अल्लाह ने नूह को भेजा ताकि लोगों को दोबारा अल्लाह के मार्ग पर वापस लायें। जैसा कि महान अल्लाह ने अपने इस कथन में ख़बर दी है:
“हमने नूह़ को उसकी जाति की ओर (अपना संदेश पहुँचाने के लिए) भेजा था, तो उन्होंने कहा: हे मेरी जाति के लोगो! (केवल) अल्लाह की इबादत (वंदना) करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य नहीं। मैं तुम पर एक बड़े दिन की यातना से डरता हूँ।”
[सूरह अल-आराफ़: 59]
नूह अलैहिस्सलाम लंबे समय तक लोगों को अल्लाह की इबादत की ओर बुलाते रहे, लेकिन उनके साथ बहुत थोड़े लोग ही ईमान लाए। ऐसे में उन्होंने अपने रब़ से दुआ की:
“नूह़ ने कहा: मेरे पालनहार! मैंने अपनी जाति को (तेरी ओर) रात और दिन बुलाया।
मगर मेरे बुलावा ने उनको तेरे रास्ते से और अधिक दूर कर दिया।
और मैंने जब भी उन्हें बुलाया ताकि तू उन्हें क्षमा कर दे तो उन्होंने अपने कानों में अपनी उँगलियाँ डाल लीं, अपने कपड़े ओढ़ लिए तथा अड़े रहे और बड़ा घमंड किया।
फिर मैंने उन्हें खुले में तेरी ओर बुलाया।
फिर मैंने उनसे खुलकर कहा और उनको अकेले में भी समझाया।
मैंने कहा: अपने पालनहार से क्षमा माँगो, वास्तव में वह बड़ा क्षमाशील है।
वह आकाश से तुम पर धाराप्रवाह वर्षा भेजेगा।
तथा तुम्हें अधिक पुत्र तथा धन देगा और तुम्हारे लिए बाग़ पैदा करेगा तथा नहरें निकालेगा।
क्या हो गया है तुम्हें कि तुम अल्लाह की महिमा से नहीं डरते?
जबकि उसने तुम्हें विभिन्न प्रक्रियायों से गुजार कर पैदा किया है।”
[सूरह नूह: 5-14]
अपनी जाति को सत्य के मार्ग पर लाने के इस निरंतर प्रयास और दृढ़ इच्छा के बावजूद लोगों ने उनको झुठलाया, उनका मज़ाक़ उड़ाया और उनको पागल कहा।
ऐसे में अल्लाह ने उनकी ओर वह्यी उतारी:
“तुम्हारी जाति में से ईमान नहीं लाएँगे, उनके सिवा जो ईमान ला चुके हैं, अतः जो वे कर रहे हैं उस से दुःखी न हो।”
[सूरह हूद: 36]
तथा अल्लाह ने उन्हें आदेश दिया कि वह एक नाव बनाएँ और उसमें अपने साथ ईमान लाने वाले सभी लोगों को सवार कर लें।
“और नूह नाव बनाते थे और जब भी उन की जाति के प्रमुख उन के पास से गुज़रते, तो वह उन की खिल्ली उड़ाते, नूह़ ने कहा: यदि तुम हम हर हंसते हो, तो हम भी ऐसे ही (एक दिन) तुम पर हंसेगे जैसा कि तुम हम पर हंसते हो।
फिर तुम शीघ्र ही जान जाओगे कि किस पर अपमानकारी यातना आएगी और स्थायी अज़ाब किस पर उतरेगा?
यहाँ तक कि जब हमारा आदेश आ गया और तन्नूर उबल पड़ा, तो हमने (नूह़ से) कहा: उस में प्रत्येक प्रकार के जीवों के दो जोड़े (नर एवं नारी) रख लो और अपने परिजनों को भी, उन के सिवा जिनके डुबो दिए जाने का फ़ैसला हो चुका है, और जो ईमान लाए हैं, और उसके साथ थोड़े ही लोग ईमान लाए थे।
और नूह़ ने कहा: इस में सवार हो जाओ, अल्लाह के नाम ही से इसका चलना तथा रुकना है। वास्तव में मेरा पालनहार बड़ा क्षमाशील एवं दयावान् है।
और वह नाव उन्हें लिए पर्वत जैसी ऊँची लहरों में चलने लगी, और नूह़ ने अपने पुत्र को पुकारा, जबकि वह उनसे अलग खड़ा था: हे मेरे बेटे! मेरे साथ नाव में सवार हो जा और काफ़िरों के साथ न रह जाओ।
उसने कहा: मैं किसी पहाड़ की शरण ले लूँगा, जो मुझे जल से बचा लेगा। नूह़ ने कहा: आज अल्लाह के आदेश (यातना) से कोई बचाने वाला नहीं है परन्तु जिसपर अल्लाह दया करे और दोनों के बीच एक लहर आड़े आ गई और वह डूबने वालों से में हो गया।
और कहा गया: हे धरती! तू अपना जल पी जा और हे आकाश! तू थम जा औ जल उतर गया और आदेश पूरा हो गया और नाव “जूदी” पर ठहर गई और कहा गया कि अत्याचारियों के लिए (अल्लाह की दया से) दूरी है।
तथा नूह़ ने अपने रब़ से प्रार्थना की और कहा: हे मेरा रब़! मेरा पुत्र मेरे परिजनों में से है। निश्चय तेरा वचन सत्य है तथा तू ही सबसे अच्छा निर्णय करने वाला है।
अल्लाह ने कहा: वह तेरा परिजनों में से नहीं है, (क्योंकि) उस का कार्य नेक नहीं है। अतः मुझ से उस चीज़ का प्रश्न न कर जिसका तुम्हें कोई ज्ञान नहीं। मैं तुम्हें बताता हूँ कि अज्ञानों में न हो।
नूह़ ने कहा: मेरे पालनहार! मैं तेरी शरण चाहता हूँ कि मैं तुझसे ऐसी चीज़ की माँग करूँ जिसका मुझे कोई ज्ञान नहीं है, और यदि तु ने मुझे क्षमा नहीं किया और मुझ पर दया नहीं की, तो मैं क्षतिग्रस्तों में हो जाऊँगा।
कहा गया कि हे नूह़! आप हमारी ओर से नाव से सुरक्षित उतर जा, और तुझपर, और तेरे साथ जो ईमान वाले हैं, उन में से कुछ की संतान पर हमारी सम्पन्नता उतरेगी, और कुछ समुदायों को हम सांसारिक जीवन सामग्री प्रदान करेंगें, फिर आख़िरत में उन्हें हमारी दुःखदायी यातना पहुँचेगी।”
[सूरह हूद: 38-48]